PCOS – पीसीओएस और प्रेगनेंसी से जुड़ी सभी जरूरी बातें

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PCOS या PCOD के कारण गर्भधारण में समस्या होने पर कई महिलाओं को प्रेगनेंसी नहीं हो पाती है .

पीसीओएस  ( PCOS ) या पोलीसिस्टिक ओवरी क्या होता है ?

PCOS या पोलीसिस्टिक ओवरी एक ऐसी समस्या है जिसमे अंडाशय यानी ओवारी  में अत्यधिक अंडे होने की वहज से होर्मोन्स का संतुलन बिगड़ जाता है और इसी वजह से अंडे बनने की प्रक्रिया एवं अण्डों के समय से फूटने ( ओव्युलेशन  ) की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है .

पीसीओडी PCOD और पीसीओएस PCOS के बीच क्या अंतर है ?

आज से कई वर्ष पहले इस परेशानी को पोलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (PCOD) के नाम से जाना जाता था . परन्तु डिजीज शब्द का  नकाराक्मक अर्थ होने के कारण आजकल इसे  पोलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम ( PCOS ) नाम से जाना जाता है .

PCOS  की वजह से इनफर्टिलिटी या प्रेगनेंसी में दिक्कत क्यों होती है ?

महिला के शरीर में अण्डों के विकसित होने की प्रक्रिया,माहवारी यानी पीरियड के दुसरे या तीसरे दिन से शुरू हो जाती है . अंडाशय में विकसित हो रहे अंडे का साइज़ जब पर्याप्त हो, तब माहवारी के 12 से 13 दिन के बाद अंडा फूटने की या ओव्यूलेशन की प्रक्रिया शरू हो जाती है . पीसीओएस  PCOS  के केस में होरमोंस की गड़बड़ी की वहज से न अंडा बढ़ता है और न ही अंडाशय में से अंडा समय पर फूटता है . PCOS  में ओव्यूलेशन या तो होती ही नहीं है या फिर टाइम पर नहीं होती है , इन दोनों कारणों से न ही प्रेगनेंसी हो पाती है और न ही नियमित रूप से पीरियड आता है. इसलिए ये कहना उचित होगा की PCOS में महिला के फर्टिलिटी पर असर पड़ता है  .

पीसीओएस और प्रेगनेंसी ! क्या PCOS की वजेह से एबॉर्शन या गर्भपात (मिस्केरेज ) कि संभावना बढ़ जाती है ?

कई अध्ययन एवं शोधकार्य से ये पता चलता है की PCOS की मरीजों में एबॉर्शन या मिस्केरेज होने की संभावना नार्मल महिलाओं से ज्यादा है . इस कारण से PCO के मरीजों को प्रेगनेंसी ठेहेरने में  दिक्कत आती है .

क्या PCOS के केस में महिला को बिना किसी इलाज से प्रेगनेंसी हो सकती है ?

PCOS के मरीज naturally  प्रेग्नेंट हो सकते हैं. यदि PCOS / PCOD के मरीज़ को माहवारी रेगुलर या नियमित तौर पर आ रही हो और सोनोग्राफी में ओव्यूलेशन के संकेत दिख रहे हों तो प्रेगनेंसी नैचुरली भी हो सकती है .

पोलीसिस्टिक ओवरी या PCOS की समस्या होने पर क्या इलाज करवाना चाहिए ?

PCO के मरीज़ को निःसंतानता विशेषज्ञ सर्वप्रथम वजह घटाने की सलाह देते हैं . यदि मरीज़ 5% बॉडी वेट यानी अपने शरीर का केवल 5% वजन भी घटा ले तो उन्हें  पीसीओएस  का इलाज करवाने पर अच्छे रिजल्ट मिलते है .
PCO के ट्रीटमेंट का एक ही उद्देश है, अंडाशय में बन रहे अण्डों का सही समय पर ओव्यूलेशन करवाना . ओव्यूलेशन की प्रक्रिया को नियमित करने के लिए पीसीओ के मरीज़ को ओव्यूलेशन में सहायक दवाइयां एवं गोलियां दी जाती है जैसे की Clomiphene Citrate या Letrozole. दवाइयों के साथ साथ सोनोग्राफी के माध्यम से फॉलिकल मोनिटरिंग या ओव्यूलेशन स्टडी की जाती है .
यदि गोलियों से भी ओव्यूलेशन नहीं हो रहा हो तो ऐसे में इंजेक्शनस जैसे की HMG या  FSH भी दिया जाता है .
कभी कभी पीसीओ मरीजों को metformin जैसी दवाइयों की भी ज़रूरत पड़ सकती है जो PCOS के केस में होरमोंस को संतुलित रखने में काम आता है .
यदि दवाइयों या इंजेक्शनस से भी ओव्यूलेशन नहीं हो रहा हो तो ऐसे में लैपरोस्कोपिक  ओवेरियन ड्रिलिंग या दूरबीन जांच के साथ इंजेक्शनस बढाने की ज़रूरत हो सकती है .
यदि ये सब करवाने के बाद भी प्रेगनेंसी नहीं हो पा रही हो तो IVF करवाने के बारे में सोचना अवश्य चाहिए.

पीसीओएस और प्रेगनेंसी

PCO की समस्या होने पर वजन घटाने को क्यों कहा   जाता है ?

PCO की वजेह से अधिकतर मरीजों का वजन ज्यादा होता है, अधिक वजन या मोटापा होने की वजेह से डायबिटीज एवं दूसरी परेशानियां भी बढ़ सकती है .
यदि मरीज़ संतुलित आहार एवं एक्सरसाइज के ज़रिये अपना वज़न घटा ले, तो ऐसे में इन्सुलिन सेंसिटिविटी भी बढ़ जाती है जिस वजह से मरीज़ को पीसीओ के बाकी लक्षणों से भी राहत मिल सकती है .
वजन घटाने से मरीज़ का अंडाशय भी सामान्य रूप से हॉर्मोन का उत्पादन करने लगते हैं जिससे माहवारी भी नियमित होने की संभावना रहती है. इसके अलावा वजन घटाने से पीसीओ के अन्य लक्षण जैसे चेहरे पर अधिक बाल या मुहासें भी कम होने की संभावना होती है .

पीसीओ – PCO के केस में IUI से प्रेगनेंसी होने की क्या संभावना है ?

यदि PCOS  के कारण माहवारी पूरी तरह अनियमित है या माहवारी आती ही न हो तो ऐसे में सबसे पहले निःसंतानता विशेषज्ञ दवाइयों के ज़रिये माहवारी को नियमित करने की कोशिश करते हैं. माहवारी नियमित होने के बाद  नार्मल रूप से भी गर्भधारण हो  सकता है या कृत्रिम गर्भाधान यानी IUI के ज़रिये प्रेगनेंसी प्लान हो सकती  है .
आइयूआइ की प्रक्रिया में, अंडाशय में अण्डों को विकसित करने की दवाइयां दी जाती है और सोनोग्राफी के माध्यम से अण्डों की ग्रोथ को मॉनिटर किया जाता है . अण्डों की पर्याप्त साइज़ होने पर दवाइयों या इंजेक्शन के माध्यम से अण्डों के फूटने की दवाइयां दी जाती है एवं उचित समय आने पर पति के शुक्राणु को कैथिटर के ज़रिये गर्भाशय में छोड़ दिया जाता है . पीसीओ की वजेह से IUI की सक्सेस रेट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. IUI का सक्सेस रेट 10 से 12% के बीच होता है . PCO की वजेह से यदि किसी साइकिल में 2 से अधिक अंडे विकसित हो जाएँ तो ऐसे में IUI रद्द होने की संभावना ज़रूर रहती है .

personalized IVF stimulation protocol

पीसीओएस PCOS होने के कारन क्या IVF प्रोटोकॉल में कुछ अलग होता है ?

PCOS के मरीज़ के लिए एंटएगोनिस्ट IVF स्टीमुलेशन प्रोटोकॉल का चयन करना चाहिए, इससे IVF सम्बंधित रिस्क कम होने की संभावना होती है . PCOS के मरीजों में अधिकतर अंडाशय में अण्डों की संख्या ज़रूरत से ज्यादा होती है इस वजेह से इन मरीजों में IVF फ्रीज ऑल प्रोटोकॉल का चयन किया जाता है . इस प्रोटोकॉल में IVF द्वारा बने भ्रूणों का प्रस्थापन उसी IVF साइकिल में करने की जगह , ET के बाद के महीनों में किया जाता है .

PCOS के मरीज़ में इन IVF प्रोटोकॉल्स का चयन करने से बेहतर क्वालिटी के अंडे एवं बेहतर क्वालिटी के भ्रूणों के बनने की संभावना बढ़ जाती है .

क्या PCOS होने की वजेह से IVF की सक्सेस रेट कम हो जाती है ?

यदि उचित IVF प्रोटोकॉल्स का चयन किया जाय तो PCOS के मरीजों में भी नार्मल मरीजों जैसे या उनसे बेहतर IVF सक्सेस रेट मिल सकता है .
PCOS के कई मरीजों में अंडाशय में अण्डों की संख्या अधिक होने के कारण , ज्यादा भ्रूण बनने की संभावना होती है . इस वजह से IVF सफलता दर PCOS  के मरीजों के लिए ज्यादा होती है . परन्तु कई बार पीसीओ के मरीजों में अंडाशय में अण्डों की संख्या अधिक होने के कारण अण्डों की क्वालिटी में गिरावट देखने को मिलती है , इस वजह से PCOS मरीजों को IVF ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले कुछ महीनों के लिए IVF-प्री ट्रीटमेंट प्लान पर रखा जाता है.

क्या IVF के दौरान भ्रूण प्रस्थापन यानी ET के बाद का इलाज पीसीओ पेशेंट्स के लिए अलग होता है ?

नहीं भ्रूण प्रस्थापन के बाद यानी ET ( एम्ब्र्यो ट्रान्सफर) के बाद दी जाने वाली दवाइयों में पीसीओ के मरीजों के लिए कुछ भी अलग नहीं किया जाता है . यह सामान्य पेशेंट्स के इलाज की तरह ही होता है .

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