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वीर्य में शुक्राणु के न होने को एज़ूस्पर्मिआ या निल शुक्राणु की समस्हया कहते हैं। अक्सर मरीज़ को इस समस्या का पता शुक्राणु की जाँच करवाने पर पता चलता है।

नि:संतानता से जूझ रहे तकरीबन २० से २५ % पुरुषों को निल शुक्राणु की समस्या होती है।  पुरुषों में बाँझपन होने का एक प्रमुख कारण शुक्राणुओं की कमी अथवा शुक्राणुओं की गुणवत्ता एवं संख्या में कमी होती है।

अक्सर मरीज़ ये जानना चाहते  हैं की निल शुक्राणु का इलाज है या नहीं . ये समझने से पहले मरीजों का ये समझना ज़रूरी है की वीर्य में शुक्राणु सच में निल है या शुक्राणु की संख्या इतनी कम है की जांच में आसानी से नहीं दिखाई दे रही ? दोनों के केस में इलाज अलग होता है. इसलिए ये बहुत ज़रूरी है की शुक्राणु की जांच किसी अच्छे लैब से करवाई जाए .

शुक्राणु की कमी या निल शुक्राणु का किस जांच से पता चलता है ?

निःसंतानता की प्राथमिक जांचों में पुरुषों हेतु शुक्राणु की जांच होती है।  शुक्राणु की जांच में वीर्य में शुक्राणु के न मिलने की स्तिथि को  एज़ूस्पर्मिआ (azoospermia) अथवा निल शुक्राणु भी कहा जाता है।  यह एक सामान्य जांच होती है जो किसी भी अच्छे पैथोलॉजी लेबोरेटरी में की जा सकती है।

क्या निल शुक्राणु की रिपोर्ट आने पर दोबारा जांच करवानी चाहिए ?

यदि सीमन एनालिसिस या शुक्राणु की जांच की एक रिपोर्ट में निल शुक्राणु बताया गया हो , तब ३ से ५ दिन बाद शुक्राणु की जांच आप दोबारा करवाएं ।

यदि एक बार आपकी शुक्राणु की जांच में शुक्राणु निल आ चुकी है तो बेहतर होगा की अगली जांच आप किसी आइवीएफ़ क्लिनिक के लैब से करवाएं जहाँ शुक्राणु की संख्या के साथ साथ वीर्य में फ्रुक्टोस की मात्रा भी देखी जाए.

दोनों रिपोर्ट में निल शुक्राणु होने पर आपको निःसंतानता विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए.

एज़ूस्पर्मिआ की जांच को लेकर किन बातो का ध्यान रखना चाहिए

इस विडियो के माध्यम से समझें अजूस्पेर्मिया या निल शुक्राणु के जांच के विषय में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी :

  1. शुक्राणु की जाँच मरीज को किसी आईवीएफ सेंटर द्वारा संचालित एन्ड्रोलोजी लेब पर करवानी चाहिए, क्युकी वहा केवल सीमेन एनालिसिस किया जाता है और वहां के तकनीशियन को पैथोलॉजी लेबोरेटरी की तुलना शुक्राणु की जांच का अनुभव ज्यादा होता है
  2. WHO के अनुसार यदि सीमेन एनालिसिस करवाने पर शुक्राणु निल (शून्य) पाए जाते है तो फ्रुक्टोज़ की जाँच होना भी जरुरी है। यदि मरीज की फ्रुक्टोज़ जांच नहीं हुई है तो उसे  2 से 3 हफ्ते के अन्तराल में फिर से सीमेन एनालिसिस करवाना चाहिए। दौबारा यह जाँच करने पर पता चलता है की एज़ूस्पर्मिआ के साथ मरीज की फ्रुक्टोज़ रिपोर्ट क्या है। इस जाँच में 2 प्रकार के परिणाम आने की सम्भावना होगी – एज़ूस्पर्मिआ के साथ फ्रुक्टोज़ रिपोर्ट पॉजिटिव (+) आना या एज़ूस्पर्मिआ के साथ फ्रुक्टोज़ रिपोर्ट नेगेटिव (-) आना।
  3. एज़ूस्पर्मिआ के साथ फ्रुक्टोज़ रिपोर्ट आने के बाद मरीज को बिना देरी किए किसी निःसंतानता विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। इस जाँच की रिपोर्ट के आधार पर निःसंतानता विशेषज्ञ मरीज को अन्य जाँचो की सलाह दे सकते है जैसे खून (हार्मोन्स) की जांच या सोनोग्राफी।
  4. खून की जाँच सामन्यतः हार्मोन्स की जाँच होती है जिनमे  – FSH , टेस्टोस्टरोन हार्मोन्स आदि का परीक्षण किया जाता है। सोनोग्राफी की जाँच में – अल्ट्रासाउंड या स्क्रोटल सोनोग्राफी जिसमे वृषण (टेस्टिस) या स्क्रोटम का परीक्षण किया जाता है। 
  5. जब मरीज की यह सभी जाँच हो जाती है तो इनकी रिपोर्ट्स के आधार पर निःसंतानता विशेषज्ञ मरीज का इलाज स्वयं के शुक्राणु (सेल्फ स्पर्म) से संभव है या नहीं यह बता सकते है। यदि खुद के शुक्राणुओं से मरीज का इलाज संभव नहीं होता है तो मरीज को डोनर स्पर्म के विकल्प पर विचार करने की जरूरत पड़ सकती है।

निल शुक्राणु टेस्ट रिपोर्ट का विश्लेषण

जाँचो के आधार पर आप कुछ इस तरह से रिपोर्ट विश्लेषण देख सकते है

AzoospermiaTestReportAnalysis

मरीज में शुक्राणु मिलने की संभावना तब होती है जब फ्रुक्टोज रिपोर्ट निगेटिव हो FSH हार्मोन की रिपोर्ट सामान्य हो , सोनोग्राफी सामान्य हो.

मरीज में शुक्राणु न मिलने की संभावना तब पाई होती है जब फ्रुक्टोज रिपोर्ट पॉजिटिव हो , FSH हॉर्मोन रिपोर्ट बढ़ा हुआ हो या असमान्य हो और सोनोग्राफी असामन्य हो.

यदि खुद के शुक्राणुओं से मरीज का इलाज संभव नहीं होता है तो मरीज को डोनर स्पर्म के विकल्प पर विचार करने की जरूरत पड़ सकती है। 

एक बार नील शुक्राणु की रिपोर्ट आने पर दोबारा रिपोर्ट में शुक्राणु मिलने की क्या संभावना है ?

कई बार दिए गए सैंपल में शुक्राणु की मात्रा इतनी कम  होती है की माइक्रोस्कोप के स्लाइड्स पर उन्हें ढूंढ पाना बहुत मुश्किल होता है।  इसी वहज से जब भी सैंपल में शुक्राणु न दिखे तो सैंपल की ख़ास प्रोसेसिंग करना अत्यंत आवश्यक है।  अच्छे एन्ड्रोलोजी लैब में इन सैम्पल्स को एक मशीन द्वारा प्रोसेस (सेंट्रीफ्यूज ) किया जाता है , जिससे सैंपल में यदि कोई भी शुक्राणु हो तो वह ट्यूब के निचले हिस्से में एकत्रित हो जाते है। 

सेंट्रीफ्यूज किये गए सैंपल को माइक्रोस्कोप से चेक किया जाता है, कई केसेस में निल शुक्राणु की रिपोर्ट होने के बावजूद, सैंपल में कुछ शुक्राणु दिख जाते हैं।  ऐसे रिपोर्ट्स को क्रिप्टोज़ूस्परमिआ (cryptozoospermia) कहते हैं। 

क्या एज़ूस्पर्मिआ (Azoospermia) या नील शुक्राणु का कोई इलाज है ?

निल शुक्राणु की रिपोर्ट आने पर यह पता लगाने की कोशिश की जाती है की शुक्राणु बनने की प्रक्रिया में दिक्कत है या फिर जिस नली से शुक्राणु बहार आते है उसमे कहीं रुकावट है।

निल शुक्राणु का इलाज है या नहीं ये कुछ जांचों पर निर्भर करता है जैसे सीमन एनालिसिस में फ्रुक्टोज़ (fructose) , खून की हॉर्मोन जांचें जैसे FSH , testosterone, LH , scrotal अल्ट्रासाउंड  इत्यादि से  पुष्टि की जाती है की अजूस्पेर्मिया किस प्रकार का है। 

कुछ पुरुषों में रिपोर्ट्स ये दर्शाते हैं की उनमे बचपन से ही या जन्मजात उन कोशिकाओं की कमी होती है जिससे बड़े होने पर शुक्राणु का उत्पादन होता हो . जहाँ की कभी कभी शुक्राणु की  रिपोर्ट्स ये दर्शाती है की शुक्राणु की उत्पादन करने वाले कोशिकाएं मौजूद है लेकिन किसी जेनेटिक कारकों  की वजेह से उनमे से शुक्राणु नहीं बन पा  रहे हैं . 

यदि निल शुक्राणु नली में रुकावट के कारण है तो एक छोटी सी प्रक्रिया के ज़रिये पतली सुई से शुक्राणु को टेस्टिस से बहार निकाला जा सकता है और उन्ही शुक्राणुओं से प्रेगनेंसी की कोशिश की जा सकती है।  इस प्रक्रिया को IVF ICSI TESA कहते हैं।

क्या निल शुक्राणु होने पर भी मैं पिता बन सकता हूँ ?

TESA प्रक्रिया द्वारा निल शुक्राणु के तकरीबन ४०% केसेस का सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है। 

शुक्राणु की रिपोर्ट्स एवं खून की जांचों से नि:संतानता विशेषज्ञ पहले यह पता करने की कोशिश करते हैं की शुक्राणु की उत्पादन हो रही है की नहीं. तकरीबन 30% से ४०% पुरुषों में शुक्राणु का उत्पादन होता है लेकिन वो नाली में रुकावट के कारन बहार नहीं आ पाते. ऐसे में विशेषज्ञ एक छोटी से प्रक्रिया के ज़रिये (TESA ) शुक्राणु को पतली सुई से बहार निकाल लेते हैं .

यह प्रक्रिया पूर्णतह सुरक्षित है।  इस प्रक्रिया को निश्चेतना की अवस्था में किया जाता है एवं मरीज़ ३ से ४ घंटे पश्चात घर जा सकता है।

TESA प्रक्रिया का खर्चा कितना होता है ?

आईवीएफ प्रक्रिया में लगने वाले खर्च के अलावा TESA प्रक्रिया में  तकरीबन 25,000 खर्च होता है।

क्या TESA प्रक्रिया में शुक्राणु मिलने की क्या गारंटी होती है ?

यह निर्भर करता है की निल शुक्राणु का कारण क्या है ? यदि नली  में रुकावट के कारन शुक्राणु बहार नहीं आ रहें हो तो TESA द्वारा शुक्राणु मिलने की संभावना ८०% से भी अधिक होती है

अच्छे डॉक्टर से ये प्रक्रिया करवाना अत्यंत ज़रूरी है ताकि वो सुक्ष्म नालियों का विश्लेषण कर ये पता लगा सके की किन में शुक्राणु का उत्पादन हो रहा है .

परन्तु यदि निल शुक्राणु नली  में रुकावट की वजह से न हो तो , TESA से शुक्राणु मिलने की संभावना कम होती है .

क्या किसी दवाई गोली या आयुर्वेदिक इलाज से निल शुक्राणु का इलाज हो सकता है ?

कई बार इन्फेक्शन के कारन शुक्राणु की रिपोर्ट में शुक्राणु की संख्या निल आती है ऐसे केस में दवाई के ज़रिये इन्फेक्शन का ट्रीटमेंट पूरा करने के बाद शुक्राणु की जांच करवाने पर शुक्राणु दिख सकते हैं .

कुछ केसेस में होरमोन के इंजेक्शन एवं दवाई से निल शुक्राणु का इलाज किया जा सकता है, परन्तु बहुत से ऐसे केसेस है जहाँ दवाइयों का कोई असर नहीं होता है 

आयुर्वेदिक दवाइयों में भी प्राकृतिक रूप में होरमोन पाए जाते है जिससे कुछ केसेस में फायदा मिल सकता है परन्तु यदि आपकी पत्नी की उम्र 30 वर्ष से अधिक है तो ज़रूरी है की सालों तक आयुर्वेदिक इलाज करवाने के बदले आप किसी निःसंतानता विशेषज्ञ की सलाह लें .

क्या दवाइयों से शुक्राणु की संख्या बढाई जा सकती है ?

किसी किसी केस में जब शुक्राणु की कमी इन्फेक्शन या होरमोन की कमी से हो तो दवाइयां या होरमोन के इंजेक्शन से शुक्राणु की संख्या बधाई जा सकती है 

निल शुक्राणु या एज़ूस्पर्मिआ? ये दोनों ही शब्द वीर्य में शुक्राणु की कमी को दर्शाते हैं। इस समस्या को निल शुक्राणु या एज़ूस्पर्मिआ कहते हैं।

निल शुक्राणु या एज़ूस्पर्मिआ की जाँच करवाते वक्त, जानिए किन बातो का रखना है ध्यान –

  • मरीज को शुक्राणु की जाँच किसी आईवीएफ सेंटर द्वारा संचालित एन्ड्रोलोजी लेब पर करवानी चाहिए।

क्युकी अन्य पैथोलॉजी लैब की तुलना में वहा शुक्राणु की जाँच का अनुभव टेकनीशियन को ज्यादा होता है। 

  • फ्रुक्टोज वीर्य में पाया जाने वाला एक तत्व होता है और WHO के अनुसार, यदि सीमेन एनालिसिस करवाने पर शुक्राणु निल (शून्य) पाए जाते हैं तो फ्रुक्टोज़ की जाँच भी जरुरी होती है।अगर मरीज की फ्रुक्टोज़ जांच नहीं हुई है तो उसे 2 से 3 हफ्ते के अन्तराल में फिर से सीमेन एनालिसिस करवाना चाहिए।

इस जाँच में 2 प्रकार के परिणाम आने की सम्भावना हो सकती है –

  • एज़ूस्पर्मिआ के साथ फ्रुक्टोज़ रिपोर्ट पॉजिटिव (+) आना
  • एज़ूस्पर्मिआ के साथ फ्रुक्टोज़ रिपोर्ट नेगेटिव (-) आना
  • फ्रुक्टोज़ रिपोर्ट आने के बाद मरीज को बिना देरी किए किसी निःसंतानता विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। रिपोर्ट के आधार पर निःसंतानता विशेषज्ञ मरीज को  अन्य जाँचो की सलाह दे सकते है – जैसे

खून की जाँच जो की सामन्यतः हार्मोन्स की जाँच होती है जिनमे  – FSH ,  टेस्टोस्टरोन हार्मोन्स आदि का परीक्षण किया जाता है l

 या  सोनोग्राफी की जाँच  जिसमे अल्ट्रासाउंड या स्क्रोटल सोनोग्राफी के माध्यम से टेस्टिस या स्क्रोटम का परीक्षण किया जाता हैl

  • जब मरीज की यह सभी जाँच हो जाती है तो इनकी रिपोर्ट्स के आधार पर निःसंतानता विशेषज्ञ मरीज का इलाज स्वयं के शुक्राणु यानि सेल्फ स्पर्म से संभव है या नहीं यह बता सकते है।
  • क्या कहती है रिपोर्ट्स –

                                         शुक्राणु मिलने की सम्भावना +                          शुक्राणु न मिलने की सम्भावना –

फ्रुक्टोज                                               —                                                                        ++

FSH                                                 सामान्य                                                      बढ़ा हुआ / असामान्य

सोनोग्राफी                                        सामान्य                                                          असामान्य

यदि खुद के शुक्राणुओं से मरीज का इलाज संभव नहीं होता है तो मरीज को डोनर स्पर्म के विकल्प पर विचार करने की जरूरत पड़ सकती है।  

क्या कहती है रिपोर्ट्स –

शुक्राणु मिलने की सम्भावना +
शुक्राणु न मिलने की सम्भावना –
फ्रुक्टोज 
++
FSH
सामान्य 
बढ़ा हुआ / असामान्य
सोनोग्राफी
सामान्य 
असामान्य
यदि खुद के शुक्राणुओं से मरीज का इलाज संभव नहीं होता है तो मरीज को डोनर स्पर्म के विकल्प पर विचार करने की जरूरत पड़ सकती है। 
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