

आईवीएफ क्या होता है ?
आइवीएफ़ या टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया के दौरान शरीर के बहार अण्डों एवं शुक्राणुओं का निषेचन आइवीएफ़ लैब में किया जाता है, इन निषेचित यानी फर्टीलाइज भ्रूणों को तीन से पांच दिनों तक एक इनक्यूबेटर में रखा जाता है. समय आने पर इन विकसित भ्रूणों में से एक या दो भ्रूण महिला के गर्भाशय में छोड़ दिया जाता है .
इस पूरी प्रक्रिया को आइवीएफ़ या टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया कहा जाता है.
आईवीएफ़ इलाज और टेस्ट ट्यूब बेबी इलाज में क्या अंतर है ?
क्यूंकि आइवीएफ़ प्रक्रिया के दौरान फल्लोपियन ट्यूब में होने वाला पूरा काम , ट्यूब से बहार कृत्रिम वातावरण में किया जाता है इसलिए आइवीएफ़ प्रक्रिया को आज से कुछ साल पहले टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया कहा जाता था .
यह कहना उचित होगा की आइवीएफ़ प्रक्रिया एवं टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं है , दोनों एक ही प्रक्रिया के नाम हैं. नए दौर में इस प्रक्रिया को IVF से ही संबोधित किया जाता है .
आइवीएफ़ ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है ?
आइवीएफ़ की प्रक्रिया तीन चरणों में बांटी जा सकती है :
आइवीएफ़ का प्रथम चरण: महिला के अंडाशय को इंजेक्शन व दवाइयों से उत्तेजित करना
इस प्रक्रिया के दौरान इंजेक्शन व दवाइयों द्वारा महिला के अंडाशय को अधिक मात्र में अंडे बनाने हेतु उत्तेजित किया जाता है , इस दौरान रोज़ इंजेक्शन लगाये जाते हैं एवं तीन से चार सोनोग्राफी के माध्यम से अंडाशय में बढ़ने वाले अण्डों का आकार नापा जाता है. उचित साइज़ हो जाने पर ओवम पिकअप या अंडाशय में से अंडे निकालने की प्रक्रिया प्लान की जाती है .
आइवीएफ़ का दूसरा चरण : ओवम पिकअप
इस प्रक्रिया के दौरान एक पतली सी सुई के ज़रिये अंडाशय में से अंडे निकाल IVF लैब में पहुंचा दिए जाते हैं. यह प्रक्रिया निश्चेतना यानी बेहोशी की अवस्था में किया जाता है, ओवम पिकअप में दस या पंद्रह मिनट का समय लगता है . यह प्रक्रिया बहुत ही सुरक्षित है. इस प्रक्रिया के पश्चात मरीज़ तीन से चार घंटों में घर जा सकता है .
आइवीएफ़ का तीसरा चरण : भ्रूण प्रस्थापन यानी एम्ब्र्यो ट्रान्सफर
एम्ब्र्यो ट्रान्सफर एक बहुत ही साधारण प्रक्रिया है जिसमे आइवीएफ़ लैब में विकसित हो रहे भ्रूण की एक पतली सी कैथेटर ( नली ) के ज़रिये गर्भ में प्रस्थापित किया जाता है . इस प्रक्रिया के दौरान मरीज़ को साधारणतः बेहोश नहीं किया जाता , यह प्रक्रिया नीचे के रस्ते से होने वाली सोनोग्राफी जैसा होता है एवं २ से ३ मिनट के अन्दर संपन्न हो जाता है .
आइवीएफ़ प्रक्रिया के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने हेतु, निम्नलिखित लेख पढ़ें :

IVF ट्रीटमेंट के क्या फायदे है ? आइवीएफ़ कब करवाना चाहिए ?
आइवीएफ़ ट्रीटमेंट का सबसे बड़ा फायदा येही है की जिन दम्पतियों को संतान सुख प्राप्त नहीं है, उन्हें टेस्ट ट्यूब बेबी या आइवीएफ़ प्रक्रिया द्वारा बच्चे हो सकते हैं. आइवीएफ़ प्रक्रिया से गर्भधारण की तब ज़रूरत पड़ती है जब :
- महिला के दोनों फालोपियन ट्यूब बंद हो या ट्यूब में कोई रुकावट हो
- महिला की बढती उम्र के कारण अंडाशय में अन्डो की कमी हो (Low AMH ) जिस वजेह से गर्भधारण नहीं हो रहा हो
- महिला के अंडाशय में अण्डों की संख्या कम हो
- महिला की माहवारी उम्र से पहले बंद हो गयी हो या कम हो गई हो
- महिला के गर्भाशय में किसी विकार के कारण गर्भ पल न पा रहा हो
- बार बार मिस्केरेज या एबॉर्शन हो रहा हो
- पुरुष में शुक्राणु की संख्या में कमी हो
- पुरुष में शुक्राणु की कमी यानी निल शुक्राणु या अजूस्पर्मिया हो
- पुरुष में शुक्राणु की गुणवत्ता या गतिशीलता में कमी हो
आइवीएफ़ प्रक्रिया के क्या साइड इफ़ेक्ट होते हैं ?
आइवीएफ़ की प्रक्रिया में निरंतर शोध कार्य के कारन आज आइवीएफ़ की प्रक्रिया पूर्णतः सुरक्षित हो चूका है , बेहतर दवाइयां एवं तकनीको के कारण आइवीएफ़ प्रक्रिया में अब बहुत ही मामूली जोख़िम रह गया है . जब आइवीएफ़ किसी प्रशिक्षित डॉक्टर से करवाया जाए तो कोई भी रिस्क की बात नहीं रहती. लेकिन जब येही प्रक्रिया किसी ऐसे डॉक्टर से करवाई जाए जिन्हें प्रशिक्षण एवं एक्सपीरियंस की कमी हो, तो OHSS या ओवेरियन हाइपर स्टिमुलेशन सिंड्रोम जैसी रिस्क भी हो सकती है .
OHSS, आइवीएफ़ का एक गंभीर साइड इफ़ेक्ट है जो लगभग 5 % महिलाओं को होने की संभावना होती है , OHSS के दौरान अंडाशय में अण्डों की संख्या ज्यादा होने के कारण, अंडाशय की साइज़ बहुत बढ़ जाती है एवं पेट में पानी भरने लगता है , इससे महिला को उल्टी एवं पेट दर्द की शिकायत होती है .
प्रशिक्षित एवं अनुभवी IVF स्पेशलिस्ट OHSS की जटिलता को समझते हैं और जानते हैं की इसे कैसे ट्रीट किया जाए , इसलिए ये बहुत ज़रूरी है की आइवीएफ़ केवल अनुभवी डॉक्टर्स से ही करवाया जाए. उन्नत आइवीएफ़ तकनीक , अच्छे IVF इंजेक्शन एवं अच्छे IVF प्रोटोकॉल्स के कारण OHSS आज बहुत कम देखने को मिलता है.

आइवीएफ़ प्रक्रिया में कितना दर्द होता है ?
अक्सर मरीजों को ये सवाल होता है की आइवीएफ़ यानी टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में कितना दर्द या तकलीफ होती है .
इस विषय को समझने के लिए आइवीएफ़ प्रक्रिया के चरण को समझना होगा, पहली चरण की बात की जाय तो इस चरण में हॉर्मोन के इंजेक्शन के द्वारा अंडाशय की उत्तेजित किया जाता है . आइवीएफ़ के दौरान लगने वाले इंजेक्शन मरीज़ को रोज़ लगाना रहता है , यह इंजेक्शन दो प्रकार के होते हैं , एक जो कमर पर लगाया जाता है और दूसरा जो पेट पर. पेट पर लगने वाले इंजेक्शन बहुत ही बारीक सुई से लगाये जाते हैं इसलिए उसे लगते वक़्त दर्द का एहसास नहीं होता है, परन्तु जो इंजेक्शन कमर पर लगते हैं उनमे थोडा बहुत दर्द महसूस हो सकता है , इसलिए कमर की साइड बदलकर लगवाएं.
अब बात करते हैं IVF प्रक्रिया से दुसरे चरण की , यानी अंडाशय में से अंडे निकालने की प्रक्रिया , यह प्रक्रिया बेहोशी की हालत में की जाती है इसलिए मरीज़ को किसी भी प्रकार के दर्द का आभास नहीं होता है , प्रक्रिया १० से १५ मिनट के अन्दर संपन्न हो जाती है एवं होश आने के बाद समान्यतः कोई भी तकलीफ नहीं होती .
अब आइवीएफ़ का आखरी चरण यानी भ्रूण प्रस्थापन यानी एम्ब्र्यो ट्रान्सफर की बात की जाए तो इस प्रक्रिया के दौरान बिलकूल दर्द का एहसास नहीं होता है , यह प्रक्रिया के दौरान पेशेंट को ऐसा ही एहसास होता है जैसे उन्हें नीचे के रस्ते से सोनोग्राफी करते वक़्त होता हो.
क्या आइवीएफ़ से पैदा होने वाले बच्चे नार्मल होते हैं ?
टेक्नोलॉजी के निरंतर विकास एवं तरक्की की वजेह से बेहतर इनक्यूबेटर , बेहतर कल्चर मीडिया एवं बेहतर तकनीकों के कारन ही अब IVF बहुत ही सुरक्षित एवं किफायती बन चूका है .
पिछले 45 वर्षों के गह शोध कार्य एवं अनेकों रिसर्च से पता चला है की आइवीएफ़ प्रक्रिया से पैदा होने वाले बच्चें किसी भी तरह से दुसरे बच्चों से अलग नहीं होते. इस विषय में अधिक जानकारी हेतु हमारा ब्लॉग पढ़ें – आइवीएफ़ प्रेगनेंसी .
हमेशा येही कोशिश करें की प्रशिक्षित एवं अनुभवी डॉक्टर से इलाज करवाएं जो एक समय पर एक ही भ्रूण छोड़े , गर्भाशय में एक ही भ्रूण छोड़ने पर बच्चे की पुरे समय पर डिलीवरी होने की संभावना बढ़ जाती है जिससे होने वाले बच्चा स्वस्थ पैदा होने की संभावना अधिक हो जाती है .
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