आईवीएफ क्या होता है ?

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आईवीएफ क्या होता है ?

आइवीएफ़ या टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया के दौरान शरीर के बहार अण्डों एवं शुक्राणुओं का निषेचन आइवीएफ़ लैब में  किया जाता है, इन निषेचित यानी फर्टीलाइज भ्रूणों को तीन से पांच दिनों तक एक इनक्यूबेटर में रखा जाता है. समय आने पर इन विकसित भ्रूणों में से एक या दो भ्रूण महिला के गर्भाशय में छोड़ दिया जाता है .

इस पूरी प्रक्रिया को आइवीएफ़ या टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया कहा जाता है.

टेस्ट ट्यूब बेबी ओर नार्मल बेबी में क्या फर्क होता है?

टेस्ट ट्यूब बेबी और नार्मल बेबी में कोई फर्क नहीं होता है l आईवीएफ प्रेगनेंसी में शुरुवाती दौर में चलने वाली कुछ दवाइयों की खुराक सामान्य प्रेगनेंसी से थोड़ी अलग होती है। यह भी जानिए की आईवीएफ उपचार की प्रक्रिया में भ्रूण को आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक से विशेष लैब में तैयार किया जाता हैं और एम्ब्रियो ट्रान्सफर की प्रक्रिया से महिला के गर्भ में स्थानांतरित किया जाता है। भ्रूण का निषेचन भले लेब हुआ हो लेकिन स्थानांतरण के बाद प्राकृतिक गर्भधारण में जिस प्रकार भ्रूण का विकास  महिला के गर्भ में होता है ठीक उसी प्रकार टेस्ट ट्यूब बेबी में भी भ्रूण का विकास सामान्य गर्भावस्था के जैसे ही महिला के गर्भ में होता है।

यदि IVF प्रक्रिया के दौरान गर्भाशय में एक से ज्यादा भ्रूण छोड़े जाएंगे तो ट्विन्स बेबी की सम्भावना बढ़ जाती है और यह सामान्य प्रेगनेंसी जैसी नहीं होती। इसमें प्री मेच्योर बेबी होने का खतरा बढ़ जाता है । इसलिए टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए ऐसे ही IVF क्लिनिक या विशेषज्ञ चुने जो एक ही भ्रूण गर्भाशय में ट्रान्सफर करने की सलाह देते हैं ।

आईवीएफ़ इलाज और टेस्ट ट्यूब बेबी इलाज में क्या अंतर है ?

क्यूंकि आइवीएफ़ प्रक्रिया के दौरान फल्लोपियन ट्यूब में होने वाला पूरा काम , ट्यूब से बहार कृत्रिम वातावरण में किया जाता है इसलिए आइवीएफ़ प्रक्रिया को आज से कुछ साल पहले  टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया कहा जाता था .

यह कहना उचित होगा की आइवीएफ़ प्रक्रिया एवं टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं है , दोनों एक ही प्रक्रिया के नाम हैं. नए दौर में इस प्रक्रिया को IVF से ही संबोधित किया जाता है .

टेस्ट ट्यूब बेबी और IVF प्रक्रिया के पहले कौन सी जांच कराई जाती है?

टेस्ट ट्यूब बेबी और IVF प्रक्रिया के पहले निम्न जांचे जरुरी होती है –

  1. महिला हेतु : खून की जांच (AMH, FSH, एवं प्रोलेक्टिन हार्मोन्स) और ट्यूब की जांच (जो एचएसजी या लेप्रोस्कोपी द्वारा की जाती है) ये दोनों जांचे ज़रूरी होती है l
  2. पुरुष हेतु : शुक्राणु की जांच (सीमेन एनालिसिस) करवाना जरुरी होता है।

आइवीएफ़ ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है ?

आइवीएफ़ की प्रक्रिया तीन चरणों में बांटी जा सकती है :

  • आइवीएफ़ का  प्रथम चरण: महिला के अंडाशय को इंजेक्शन व  दवाइयों से उत्तेजित करना

इस प्रक्रिया के  दौरान इंजेक्शन व  दवाइयों द्वारा महिला के अंडाशय को अधिक मात्र में अंडे बनाने हेतु उत्तेजित किया जाता है , इस दौरान रोज़ इंजेक्शन लगाये जाते हैं एवं तीन से चार सोनोग्राफी के माध्यम से अंडाशय में बढ़ने वाले अण्डों का आकार नापा जाता है. उचित साइज़ हो जाने पर ओवम पिकअप या अंडाशय में से अंडे निकालने की प्रक्रिया प्लान की जाती है .

  • आइवीएफ़ का दूसरा चरण : ओवम पिकअप

इस प्रक्रिया के दौरान एक पतली सी सुई के ज़रिये अंडाशय में से अंडे निकाल IVF लैब में पहुंचा दिए जाते हैं. यह प्रक्रिया निश्चेतना यानी बेहोशी की अवस्था में किया जाता है, ओवम पिकअप में दस या पंद्रह मिनट का समय लगता है . यह प्रक्रिया बहुत ही सुरक्षित है. इस प्रक्रिया के पश्चात मरीज़ तीन से चार घंटों में घर जा सकता है .

  • आइवीएफ़ का तीसरा चरण : भ्रूण प्रस्थापन यानी एम्ब्र्यो ट्रान्सफर

एम्ब्र्यो ट्रान्सफर एक बहुत ही साधारण प्रक्रिया है जिसमे आइवीएफ़ लैब में विकसित हो रहे भ्रूण की एक पतली सी कैथेटर ( नली ) के ज़रिये गर्भ में प्रस्थापित किया जाता है . इस प्रक्रिया के दौरान मरीज़ को साधारणतः बेहोश नहीं किया जाता , यह प्रक्रिया नीचे के रस्ते से होने वाली सोनोग्राफी जैसा होता है एवं २ से ३ मिनट के अन्दर संपन्न हो जाता है .

आइवीएफ़ प्रक्रिया के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने हेतु, निम्नलिखित लेख पढ़ें :

आइवीएफ़ प्रक्रिया 

IVF steps in hindi

IVF ट्रीटमेंट के क्या फायदे है ? आइवीएफ़ कब करवाना चाहिए ?

आइवीएफ़ ट्रीटमेंट का सबसे बड़ा फायदा येही है की जिन दम्पतियों को संतान सुख प्राप्त नहीं है, उन्हें टेस्ट ट्यूब बेबी या आइवीएफ़ प्रक्रिया द्वारा बच्चे हो सकते हैं. आइवीएफ़ प्रक्रिया से गर्भधारण की तब ज़रूरत पड़ती है जब :

  • महिला के दोनों फालोपियन ट्यूब बंद हो या ट्यूब में कोई रुकावट हो
  • महिला की बढती उम्र के कारण अंडाशय में अन्डो की कमी हो (Low AMH ) जिस वजेह से गर्भधारण नहीं हो रहा हो
  • महिला के अंडाशय में अण्डों की संख्या कम हो
  • महिला की माहवारी उम्र से पहले बंद हो गयी हो या कम हो गई हो
  • महिला के गर्भाशय में किसी विकार के कारण गर्भ पल न पा रहा हो
  • बार बार मिस्केरेज या एबॉर्शन हो रहा हो
  • पुरुष में शुक्राणु की संख्या में कमी हो
  • पुरुष में शुक्राणु की कमी यानी निल शुक्राणु या  अजूस्पर्मिया हो
  • पुरुष में शुक्राणु की गुणवत्ता या गतिशीलता में कमी हो

 

क्या IVF द्वारा जन्मे बच्चे जल्दी पैदा होते हैं?

ऐसा कहना बिलकुल सही नहीं है की आईवीएफ उपचार द्वारा जन्मे बच्चे समय से पूर्व पैदा होते है। एक महिला की आईवीएफ साइकिल सामान्य गर्भावस्था के जैसी ही होती है और इसमें प्रजनन भी आम डिलीवरी जैसा ही होता है।

कई IVF सेंटर अपनी सफलता दर बढ़ाने के लिए एक से ज्यादा भ्रूण महिला के गर्भाशय में प्रस्थापित कर देते है जिससे जुड़वाँ (ट्विन्स) प्रेगनेंसी की सम्भावना बढ़ जाती है और जिसकी वजह से समय पूर्व प्रसव होने की सम्भावना बढ़ जाती है l  इसलिए निःसंतान दम्पति आईवीएफ इलाज के लिए ऐसा इनफर्टिलिटी क्लिनिक चुने जहा आम तौर पर एक ही भ्रूण  गर्भाशय में प्रस्थापित किया जाता हो।

क्या IVF से 100% परिणाम मिलता है?

IVF प्रक्रिया से 100 % सफल परिणाम मिलना पूरी तरह से भ्रम है। आईवीएफ की सफलता दर महिला की उम्र, अंडाशय में अंडो की संख्या, गर्भाशय की परत, पुरुष में शुक्राणुओं की गतिशीलता, सीमेन एनालिसिस की रिपोर्ट आदि कई कारणों पर  निर्भर करती है।  रिसर्च के अनुसार 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में आईवीएफ की सफलता दर लगभग 60% पाई गई है लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, IVF सफलता की संभावना कम होती जाती है।

आईवीएफ के दौरान आमतौर पर कितने अंडे निकाले जाते हैं?

आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान महिला के अंडाशय से निकाले जाने वाले अंडे खास कर निर्भर करते है महिला की उम्र और हार्मोन्स पर। महिला की उम्र जितनी अधिक होगी उतनी ही अच्छी गुणवत्ता वाले अंडो की संख्या कम होगी। अनुमानित तौर पर सामान्यतः आइवीएफ़ के दौरान 7 से 12 अंडे निकाले जाते है l

क्या आइवीएफ़ सुरक्षित है ?

आइवीएफ़ के दौरान लगने वाली इंजेक्शन या दवाइयां कुछ ही समय के लिए दी जाती है, साथ ही ये वही होर्मोनेस होते है जिनका उत्पादन साधारणतः शरीर में ही होता है , इसलिए IVF के दौरान इन दवाइयों या इंजेक्शन के लगाने का कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं होता है l

IVF के दौरान लगने वाले इंजेक्शन से OHSS यानी ओवेरियन हाइपर स्टिम्युलेशन सिंड्रोम होने का रिस्क होता है l लेकिन आजकल कई सेफ IVF प्रोटोकॉल्स आ चुके हैं जिनके ज़रिये OHSS का रिस्क बिलकुल कम हो जाता है l OHSS के रिस्क को कम करने के लिए एक अनुभवी एवं सक्षम IVF स्पेशलिस्ट से ट्रीटमेंट करवाना चाहिए l

IVF के दौरान अंडे निकालने की प्रक्रिया एनेस्थेसिया या बेहोशी की दवा देकर की जाती है ।

हर एनेस्थेसिया प्रक्रिया में सामान्य जोखिम तो रहता है परन्तु अनुभवी निःसंतानता विशेषज्ञों द्वारा उपचार में यह जोखिम कम हो जाता है। आईवीएफ प्रक्रिया में भले ही भ्रूण को लैब में तैयार किया जाता है, लेकिन भ्रूण का पूरा विकास मां के गर्भ में होता है l आईवीएफ प्रेगनेंसी सामान्य प्रेगनेंसी के जैसी ही होती है। बहुत से अनुसन्धान इस बात पर शोध कर रहे है और सभी का अनुभव कहता है की IVF प्रक्रिया महिला एवं होने वाले शिशु के लिए सुरक्षित है l

आइवीएफ़ प्रक्रिया के क्या साइड इफ़ेक्ट होते हैं ?

आइवीएफ़ की प्रक्रिया में निरंतर शोध कार्य के कारन आज आइवीएफ़ की प्रक्रिया पूर्णतः सुरक्षित हो चूका है , बेहतर दवाइयां एवं तकनीको के कारण आइवीएफ़ प्रक्रिया में अब बहुत ही मामूली जोख़िम रह गया है . जब आइवीएफ़ किसी प्रशिक्षित डॉक्टर से करवाया जाए तो कोई भी रिस्क की बात नहीं रहती. लेकिन जब येही प्रक्रिया किसी ऐसे डॉक्टर से करवाई जाए जिन्हें प्रशिक्षण एवं एक्सपीरियंस की कमी हो, तो OHSS या ओवेरियन हाइपर स्टिमुलेशन सिंड्रोम जैसी रिस्क भी हो सकती है . 

OHSS, आइवीएफ़ का एक गंभीर साइड इफ़ेक्ट है जो लगभग 5 % महिलाओं को होने की संभावना होती है , OHSS के दौरान अंडाशय में अण्डों की संख्या ज्यादा होने के कारण, अंडाशय की साइज़ बहुत बढ़ जाती है एवं पेट में पानी भरने लगता है , इससे महिला को उल्टी एवं पेट दर्द की शिकायत होती है .

प्रशिक्षित एवं अनुभवी IVF स्पेशलिस्ट OHSS की जटिलता को समझते हैं और जानते हैं की इसे कैसे ट्रीट किया जाए , इसलिए ये बहुत ज़रूरी है की आइवीएफ़ केवल अनुभवी डॉक्टर्स से ही करवाया जाए. उन्नत आइवीएफ़ तकनीक , अच्छे IVF इंजेक्शन एवं अच्छे IVF प्रोटोकॉल्स के कारण OHSS आज बहुत कम देखने को मिलता है.

 

आईवीएफ

आइवीएफ़ प्रक्रिया में कितना दर्द होता है ?

अक्सर मरीजों को ये सवाल होता है की आइवीएफ़ यानी टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में कितना दर्द या तकलीफ होती है .

इस विषय को समझने के लिए आइवीएफ़ प्रक्रिया के चरण को समझना होगा, पहली चरण की बात की जाय तो इस चरण में हॉर्मोन के इंजेक्शन के द्वारा अंडाशय की उत्तेजित किया जाता है . आइवीएफ़ के दौरान लगने वाले इंजेक्शन मरीज़ को रोज़ लगाना रहता है , यह इंजेक्शन दो प्रकार के होते हैं , एक जो कमर पर लगाया जाता है और दूसरा जो पेट पर. पेट पर लगने वाले इंजेक्शन बहुत ही बारीक सुई से लगाये जाते हैं इसलिए उसे लगते वक़्त दर्द का एहसास नहीं होता है, परन्तु जो इंजेक्शन कमर पर लगते हैं उनमे थोडा बहुत दर्द महसूस हो सकता है , इसलिए कमर की साइड बदलकर लगवाएं.

अब बात करते हैं IVF प्रक्रिया से दुसरे चरण की , यानी अंडाशय में से अंडे निकालने की प्रक्रिया , यह प्रक्रिया बेहोशी की हालत में की जाती है इसलिए मरीज़ को किसी भी प्रकार के दर्द का आभास नहीं होता है , प्रक्रिया १० से १५ मिनट के अन्दर संपन्न हो जाती है एवं होश आने के बाद समान्यतः कोई भी तकलीफ नहीं होती .

 अब आइवीएफ़ का आखरी चरण यानी भ्रूण प्रस्थापन यानी एम्ब्र्यो ट्रान्सफर की बात की जाए तो इस प्रक्रिया के दौरान बिलकूल दर्द का एहसास नहीं होता है , यह प्रक्रिया के दौरान पेशेंट को ऐसा ही एहसास होता है जैसे उन्हें नीचे के रस्ते से सोनोग्राफी करते वक़्त होता हो.

 

Preimplantation Embryo Testing

आईवीएफ पीजीडी/पीजीटी क्या है?

पीजीडी (प्री-इंप्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस) या पीजीटी (प्री-इंप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग) आईवीएफ से बने भ्रूण में मौजूद किसी प्रकार के आनुवांशिक विकार (जेनेटिक एवं क्रोमोजोमल डिसऑर्डर) का पता लगाने वाली अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है l PGD और PGT यह दोनों एक ही है l

पीजीडी या पीजीटी  के दौरान भ्रूण को गर्भाशय में छोड़ने से पहले उसके कोशिकाओं की जांच की जाती है। इस प्रक्रिया को एम्ब्रियो बायोप्सी कहते हैं l भ्रूणों की बायोप्सी कर उनमे से 5 से 8 सेल्स को जेनेटिक लैब भेजा जाता है और अत्याधुनिक जेनेटिक टेस्ट से पता लगाया जाता है की भ्रूण में किसी प्रकार की विकृति या आनुवांशिक डिसऑर्डर तो नहीं l

थेलेसेमिया, सिकल सेल अनीमिया, हिमोफिलिया , मुस्क्युलर डिस्ट्रॉफी आदि जैसी तकरीबन  400 से अधिक आनुवांशिक विकृतियों को PGT के ज़रिये टेस्ट किया जा सकता है । जो दम्पति या उनके परिवार के नजदीकी सदस्य इन जेनेटिक विकार से ग्रसित हैं, अब पीजीटी के ज़रिये वे भी नार्मल बच्चों के माता पिता बन सकते हैं । PGT आपके लिए उचित है या नहीं ये आपके IVF स्पेशलिस्ट जेनेटिक काउंसलर से परामर्श के बाद तय करते हैं l

महिला की बढती उम्र की वजह से उनके अंडाशय में अण्डों की गुणवत्ता कम हो जाती है, इस वजह से 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के अण्डों में नार्मल से ज्यादा जेनेटिक विकृतियाँ पायी जाती है l ऐसे में होने वाले शिशु में यह विकृति न हो इस लिए PGD या  PGT किया जा सकता है । इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है और जन्म लेने वाले बच्चे में आनुवांशिक विकृतियां होने की आशंका भी काफी कम हो जाती है।

आईवीएफ में एग डोनेशन क्या है?

गर्भ धारण करने में असमर्थ महिलाओं के लिए एग डोनेशन, आईवीएफ प्रक्रिया के जरिये माँ बनने का एक विकल्प है। महिला की उम्र अधिक होने की वजह से अंडाशय में अंडो की संख्या कम हो जाती है, अंडे होते हुए भी उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं होती ऐसी परिस्थति में IVF फ़ैल होने की संभावना बढ़ जाती है ।

यदि कोई महिला किसी जेनेटिक या क्रोमोजोमल डिसऑर्डर से ग्रसित होती है या जेनेटिक डिसऑर्डर होने की शंका होती है , ऐसे में भी उनके स्वयं के अण्डों से IVF नहीं किया जाता है, ऐसे में डोनेट किये हुए अण्डों से IVF प्रक्रिया की जाती है । इस प्रक्रिया को IVF एग डोनेशन कहा जाता है ।

IVF एग डोनेशन में ,स्वस्थ कम उम्र की महिलाओं द्वारा डोनेट किये गए अंडो को निःसंतान महिला के पति के स्पर्म (शुक्राणु) के साथ निषेचन कर भ्रूण लैब में तैयार कर के महिला के गर्भाशय में प्रस्थापित किया जाता है। यह एक विकल्प केवल ऐसी निःसंतान  महिलाओ के लिए होता है  जो स्वयं के अंडो के न होने या उनकी गुणवत्ता अच्छी न होने से मातृत्व सुख प्राप्त नहीं कर सकती।

क्या आइवीएफ़ से पैदा होने वाले बच्चे नार्मल होते हैं ?

टेक्नोलॉजी के निरंतर विकास एवं तरक्की की वजेह से बेहतर इनक्यूबेटर , बेहतर कल्चर मीडिया एवं बेहतर तकनीकों के कारन ही अब IVF बहुत ही सुरक्षित एवं किफायती बन चूका है .

पिछले 45 वर्षों के गह शोध कार्य एवं अनेकों रिसर्च से पता चला है की आइवीएफ़ प्रक्रिया से पैदा होने वाले बच्चें किसी भी तरह से दुसरे बच्चों से अलग नहीं होते. इस विषय में अधिक जानकारी हेतु हमारा ब्लॉग पढ़ें – आइवीएफ़ प्रेगनेंसी .

हमेशा येही कोशिश करें की प्रशिक्षित एवं अनुभवी डॉक्टर से इलाज करवाएं जो एक समय पर एक ही भ्रूण छोड़े , गर्भाशय में एक ही भ्रूण छोड़ने पर बच्चे की पुरे समय पर डिलीवरी होने की संभावना बढ़ जाती है जिससे होने वाले बच्चा स्वस्थ पैदा होने की संभावना अधिक हो जाती है .

 

क्या PCOD में IVF सफल होता है?

यदि उचित IVF प्रोटोकॉल्स का चयन किया जाय तो PCOD या PCOS के मरीजों में नार्मल मरीजों जैसे IVF सक्सेस रेट मिल सकता है। यदि PCOS  के कारण माहवारी पूरी तरह अनियमित है या माहवारी आती ही न हो तो ऐसे में सबसे पहले निःसंतानता विशेषज्ञ दवाइयों के ज़रिये माहवारी को नियमित करने की कोशिश करते हैं l माहवारी नियमित होने के बाद  नार्मल रूप से भी गर्भधारण हो  सकता है या कृत्रिम गर्भाधान यानी IUI या IVF के ज़रिये प्रेगनेंसी प्लान हो सकती  है l PCOS में कई बार अंडो की गुणवत्ता अच्छी न होने की वजह से आईवीएफ की सफलता पर प्रभाव पड़  सकता है l PCOS या PCOD के मरीज़ अधिकतर ज्यादा वज़न के होते हैं, IVF ट्रीटमेंट करवाने से पहले वज़न घटाने पर और जीवनशैली में कुछ सकारात्मक  परिवर्तन जैसे की रोजाना एक्सरसाइज और संतुलित आहार का सेवन इत्यादि करने पर IVF का परिणाम बेहतर मिलने की संभावना होती है l

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आईवीएफ फेल क्यों होता है?

मुख्य तौर पर एक सफल IVF के लिए जरुरी होते है अच्छी गुणवत्ता वाले अंडे एवं शुक्राणु, अच्छी गुणवत्ता वाले भ्रूण एवं अच्छी गर्भाशय की परत l आईवीएफ फेल होने के एक नहीं अनेक कारण होते है। अक्सर दम्पति के शुक्राणुओं एवं अंडो में कोई विकार होने कि वजह से भी आईवीएफ साइकिल फेल हो जाती है साथ ही गर्भाशय की खराब परत, आपकी जीवनशैली या क्रोमोसोमल डिसऑर्डर भी आईवीएफ विफलता का कारण हो सकती हैं।

एम्ब्रियो ट्रांसफर (भ्रूण स्थानांतरण) के बाद आईवीएफ फेल होने का मुख्य कारण है भ्रूण इम्प्लांटेशन का विफल होना।

आईवीएफ फेल होने के कई अन्य कारण भी होते है, जैसे –

  • दम्पती की आयु
  • भ्रूण की गुणवत्ता में कमी
  • शुक्राणुओं की खराब गुणवत्ता
  • क्रोमोसोमल डिसऑर्डर
  • खराब ओवेरियन रिस्पोंस
  • गर्भाशय की असामान्यताएं
  • इम्प्लांटेशन की समस्या
  • फर्टिलाइजेशन के दौरान समस्या
  • IVF विशेषज्ञ का अनुभव
  • भ्रूण विशेषज्ञ या  एम्ब्रियोलॉजिस्ट का अनुभव
  • IVF लैब का वातावरण

सभी कारणों का अध्ययन और निदान करके आईवीएफ विफलता को दूर किया जा सकता है।

असफल आईवीएफ के विकल्प भी मजूद है जिसके लिए अप्प हमारे पास आकर आईवीएफ एक्सपर्ट से मिल सकते है।

आई वी एफ में कितना खर्चा होता है ? आईवीएफ प्रक्रिया या टेस्ट ट्यूब बेबी में लगने वाला खर्च कितना होता है ?

IVF का खर्चा सब मरीजों के लिए एक जैसा नहीं होता साथ ही आम शहरो की तुलना में मेट्रो शहरो में यह ज्यादा होता है।

आईवीएफ उपचार में लगने वाला खर्च मरीज़ की उम्र, उनके वजन, निःसंतान होने की वजह एवं उन्हें IVF इंजेक्शन की कितनी खुराक लगेगी आदि पर निर्भर करता है l क्योंकि किसी भी मरीज़ में ये सारे कारण एक जैसे नहीं होते हैं, इसलिए IVF प्रक्रिया में लगने वाला खर्च भी एक सा नहीं होता l साथ ही यह निःसंतानता विशेषज्ञों एवं भ्रूण निर्माण करने वाले एम्ब्रियोलॉजिस्ट के अनुभव पर भी निर्भर करता है। 

क्या आईवीएफ इंदौर मैं करवाना चाहिए ? आईवीएफ इंदौर मैं क्यों करवाना चाहिए ?

इंदौर मध्यप्रदेश में केंद्रीय रूप से स्थित है और पूरे भारत में रेल, बस व फ्लाइट से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इंदौर की यातायात व्यवस्था मध्य भारत के किसी भी दुसरे शेहेर की तुलना में बेहतर है ।  यहाँ लगभग 27 पंजीकृत आईवीएफ सेंटर हैं, इनमे से 4 या 5 बड़े सेंटर लगभग समान सेवाएं प्रदान करते हैं। अन्य  शहरों की तुलना में इंदौर में आईवीएफ क्लीनिकों का घनत्व बहुत अधिक है। 

यह निःसंतानता (बांझपन) के रोगियों को एक अतिरिक्त लाभ देता है क्योंकि वे निश्चिंत हो सकते हैं कि, किसी अन्य शहर की तुलना में इंदौर में सबसे अच्छे आईवीएफ के डॉक्टर एवं भ्रूण विशेषज्ञ मिल सकतें है एवं मेट्रो सिटी की तुलना में यहाँ IVF कम खर्च में हो सकता है ।

इंदौर में आईवीएफ चक्र की लागत अन्य मेट्रो शहरों की तुलना में कम भी है। साथ ही इंदौर में अन्य शहरों की तुलना में होटल, एवं खाने पीने की सुविधा के खर्च भी कम है इससे मरीज़ का इलाज के अलावा बाकी चीज़ों में कम खर्च होता है ।

किसी भी निःसंतान दम्पति को आईवीएफ उपचार के लिए कोई क्लिनिक चुनने से पहले निम्न बातो का ध्यान रखना चाहिए –

  1. IVF उपचार करने वाले निःसंतान विशेषज्ञ (आईवीएफ डॉक्टर) का अनुभव एवं व्यवहार l
  2. भ्रूण निर्माण करने वाले एम्ब्रियोलॉजिस्ट का अनुभव एवं क्लिनिक में उनकी फुल टाइम उपस्थिति l (कई IVF सेंटर में भ्रूण विशेषज्ञ बाहर से आते हैं एवं पुरे समय उपस्थित नहीं रहते हैं । जिन सेंटर पर भ्रूण विशेषज्ञ फुल टाइम मौजूद रहते हैं, वहाँ IVF लैब की देखभाल बेहतर होती है ।
  3. आईवीएफ सेंटर की सफलता दर – किसी भी IVF सेंटर के पुराने मरीज़ ही सेंटर की सफलता का प्रमाण दे सकते हैं l
  4. आईवीएफ लेब के उपकरण एवं परिणाम l
  5. लैब में लेजर सुविधा की उपलब्धता – लेज़र का उपयोग PGT या लेज़र असिस्टेड हैचिंग के लिए किया जाता है । हर क्लिनिक में उनका खुदका लेज़र नहीं होता है, जिस वजह से ज़रूरत पड़ने पर ऐसे क्लीनिक लेज़र को किराये से लेते हैं एवं भ्रूण विशेषज्ञ को लेज़र प्रोसीजर का अनुभव कम होता है l

    ऐसा क्लिनिक चुनिए जहाँ लेज़र, क्लिनिक के IVF लैब में ही मौजूद हो एवं भ्रूण विशेषज्ञों को लेज़र का अनुभव हो ।

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